Menu
blogid : 9509 postid : 701956

गीत – अकुलाहट की फांस चुभी है

शंखनाद
शंखनाद
  • 62 Posts
  • 588 Comments

अकुलाहट की फांस चुभी है
मन में टीस उठाती है
.
ऊँचाई को तरस रहा दिल
पंछी रोज बुलाते हैं
पंखहीनता के पिंजरे में
अरमां गुम हो जाते हैं
लाचारी डायन सी बैठी
मंद-मंद मुस्काती है
.
घायल भावों की गठरी का
बोझ बढ़ा ही जाता है
उठा-उठा के शब्द थके हैं
छलक पसीना आता है
लंबा रस्ता अजगर दिखता
मंजिल लगे चिढ़ाती है
.
पास लगा है जीवन-मेला
इच्छाएं बलखाती हैं
सवारियाँ जातीं जो उसतक
भरी-भरी सब आतीं हैं
पीड़ा कुछ दिल में रह जाती
कुछ आँखों तक आती है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply