दोहे – मैला हुआ क्रिकेट शंखनाद यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत | अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् || परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् | धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे || बिके हुए प्यादे सभी, बिका हुआ रनरेट।
लुप्त हुई है स्वच्छता, मैला हुआ क्रिकेट॥
लगा रहा है बैट तो, सौदे पर ही जोर।
टर्न हो रही गेंद भी, सट्टाघर की ओर॥
मैदानों पर चल रहा, बैट-बॉल का खेल।
परदे पीछे हो रहा, जुआरियों का मेल॥
खिलाड़ियों ने शौक से, बेच दिया है देश।
बाहर बैठे डॉन के, मान रहे निर्देश॥
माटी ने पैदा किया, पाला सालों-साल।
सुरा-सुंदरी के लिए, बिका देश का लाल॥
पकड़े तो कीड़े गये, बिच्छू हैं आजाद।
मारेंगे फिर डंक वो, कुछ अरसे के बाद॥
फैलाती डी-कंपनी, फिक्सिंग का ये जाल।
भारत के दुश्मन सभी, होते मालामाल॥
बीसीसीआई डरी, खड़े कर दिये हाथ।
नेटवर्क इतना बड़ा, कौन फँसाये माथ॥
गई कबड्डी काम से, खो-खो भी गुमनाम।
क्रिकेटिया इस भूत ने, हमको किया गुलाम॥
देशद्रोहियों को नहीं, मिले क्षमा का दान।
बहिष्कार इनका करो, कहता यही विधान॥
बिके हुए प्यादे सभी, बिका हुआ रनरेट।
लुप्त हुई है स्वच्छता, मैला हुआ क्रिकेट॥
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लगा रहा है बैट तो, सौदे पर ही जोर।
टर्न हो रही गेंद भी, सट्टाघर की ओर॥
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मैदानों पर चल रहा, बैट-बॉल का खेल।
परदे पीछे हो रहा, जुआरियों का मेल॥
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खिलाड़ियों ने शौक से, बेच दिया है देश।
बाहर बैठे डॉन के, मान रहे निर्देश॥
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माटी ने पैदा किया, पाला सालों-साल।
सुरा-सुंदरी के लिए, बिका देश का लाल॥
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पकड़े तो कीड़े गये, बिच्छू हैं आजाद।
मारेंगे फिर डंक वो, कुछ अरसे के बाद॥
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फैलाती डी-कंपनी, फिक्सिंग का ये जाल।
भारत के दुश्मन सभी, होते मालामाल॥
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बीसीसीआई डरी, खड़े कर दिये हाथ।
नेटवर्क इतना बड़ा, कौन फँसाये माथ॥
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गई कबड्डी काम से, खो-खो भी गुमनाम।
क्रिकेटिया इस भूत ने, हमको किया गुलाम॥
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देशद्रोहियों को नहीं, मिले क्षमा का दान।
बहिष्कार इनका करो, कहता यही विधान॥
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