- 62 Posts
- 588 Comments
जय जय गोमाता सुखसागर। जय देवी अमृत की गागर॥
जीवनरस सरिता तुम दाता। तेरी महिमा गाएँ विधाता॥
वेद-पुराणों ने गुण गाया। धर्म सनातन ने अपनाया॥
दर्शन तेरा मंगलकारी। सदगुण पा जाते नर-नारी॥
वास सभी देवों का तुझमें। पुण्य सभी तीर्थों का तुझमें॥
मनोकामना पूरण करती। कामधेनु बन झोली भरती॥
चरणों की रज अति उपकारी। महापापनाशक, सुखकारी॥
जगमाता हो पालनहारी। गोपालक हैं कृष्णमुरारी॥
कृपा तिहारी बड़ी निराली। धर्म, अर्थ को देनेवाली॥
गोदर्शन यात्री जो पावे। निश्चय यात्रा सफल बनावे॥
गोरस होता सुधा समाना। सत्य सनातन सबने माना॥
दुग्ध, दही, घी, गोमूत्र पावन। गौमय रस होता मनभावन॥
पंचगव्य मिश्रण है इनका। रोग मिटें जिनसे बन तिनका॥
पंचगव्य भारी फलदायी। जनमानस ने सेहत पायी॥
जिस घर में हो वास तिहारा। घर वो है मंदिर सा प्यारा॥
रहती सुख-समृद्धि हमेशा। सदा दूर ही भागे क्लेशा॥
जन जो गुड़ का भोग लगावे। बने प्रतापी, पुण्य कमावे॥
जिसकी सच्ची श्रद्धा होती। नर वो जनमानस का मोती॥
भाग्यवान पाता है मौका। मिलती गौसेवा की नौका॥
तरणी ये वर देनेवाली। भवबाधा को हरणेवाली॥
करता है जो तेरी सेवा। पाता मुँहमाँगा फल, मेवा॥
माता हम हैं शरण तिहारी। हरदम रक्षा करो हमारी॥
Read Comments