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नेशनल विलेन : श्री राजासाहेब ठाकरे ?

शंखनाद
शंखनाद
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भारत, एक देश जहाँ मिलजुल कर रहना एक परंपरा रही है| कई सभ्यताओं और धर्मों का संगम हमारा भारत आज एक है तो अपनी इसी परंपरा के कारण| इस परंपरा पर आघात करने की कोशिशें पहले भी होती रहीं हैं और आगे भी होंगी, किन्तु आजकल एक नाम मीडिया की नजरों में इस कोशिश को बढ़ावा देने वाला एक मुख्य तत्व बना हुआ है जिनका नाम है “श्री राजासाहेब ठाकरे”| ये नाम सामने आते ही हमारा निष्पक्ष(?) और ईमानदार(?) मीडिया ऐसे आँखें तरेर लेता है जैसे वो सिपाही हो और आगे कोई चोर दिख गया| जनता और खासकर “छम्मकछल्लो” गाने की धुन पर पागलों की तरह नाचनेवाले हमारे युवा भड़क उठते हैं|

अब बात तो जायज भी है| भला कोई नेता किसी भी भारतीय को उसी के देश में कहीं भी आने-जाने से कैसे रोक सकता है? ये बात पूरी तरह से गलत भी है और असंवैधानिक भी| इस मुद्दे पर ऐसा लगता है की हमारा देश एकजुटता की मिसाल कायम करने पर आमादा हो जाता है| हमारे धर्मनिरपेक्ष(?) नेता जी तो बुढ़ापे में भी जवानी के जोश में आ जाते हैं| लगने लगता है की जिस एक सामूहिक एकता का स्वपन हमारे शहीदों ने देखा था वो आज सच हो गया| अब हमारा देश सही मायने में एक देश बन गया और अब हमें किसी से डरने की कोई जरूरत नहीं| हर खतरे का सामना हरेक भारतीय मिल कर करेगा|

लेकिन तभी अचानक ये ख्याल पूरी तरह से गलत साबित हो जाता है जब इसी तरह के कुछ और मामले सामने आने लगते हैं| बात हालिया बंगलादेशी घुसपैठियों से ही शुरू की जाए| उन आक्रान्ताओं ने भारतीय सरजमीं का अतिक्रमण अपने बाप की जमीन समझ के कर लिया और भारतीय लोगों के सर पर बैठ गए| मजे की बात तो ये की इस घुसपैठ को हमारे प्यारे मीडिया ने कभी भी राजासाहेब जैसी प्रमुखता नहीं दी| हमारे माननीय(?) लोग भी इस पर चुप बैठे रहे| परिणाम ये हुआ की अब वो घुसपैठिये भारत के लोगों को ही भारत से निकालने के लिए अपनी चिरपरिचित हिंसात्मक प्रवृति का सहारा ले रहे हैं|

मामला नंबर दो, भारत में पाकिस्तानी आतंकवादियों को जमाईतुल्य समझने का तो एक सरकारी रिवाज सा हो गया है| चाहे वो अफजल भाईसाहब हों या सबके लाडले कसाब मियाँ| एक और आये हैं, जुंदाल साहब जो जेल में भेजा फ्राई और मलाई की डिमांड कर रहे थे| अब ये सब तो हमारे मेहमान हैं और मेहमान तो भगवान समान होता है| इनकी छोडिये उस हत्यारे देश पकिस्तान से हमेशा हिजड़ों की टोली यहाँ गाने चली आती है| ये हिजड़े वही होते हैं जो भारतीय जमीन पर आ के भारतीय देशभक्ति गीत गाने से ही मना कर के चले जाते हैं| वो जालिम आतंकवादी जिन्होंने कश्मीरी पंडितों को उनके ही घर से निर्वासित कर दिया कभी मीडिया की चर्चा में नहीं आते|

मैंने आजतक किसी को भी इन लोगों को इस तरह पानी पी-पी के कोसते नहीं देखा| काश जो एकता राजासाहेब के खिलाफ बनती है उसी तरह की एकता इन तत्वों के खिलाफ होती तो आज हमारा देश आतंकवाद से मुक्त हो गया होता| मुंबई में शहीद स्मारक को तोड़नेवाले तत्वों के खिलाफ कितने चैनल वालों ने मोर्चा खोला? क्यों संसद भवन पर हमले के आरोपी की फांसी अधर में लटक रही है? किसी भी आतंकी के मारे जाने पर देश भर में ऐसा माहौल बना दिया जाता है जिससे लगता है की कोई स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गया हो| इस मानसिकता को बदलना होगा| सिर्फ राजासाहेब को नेशनल विलेन बना के कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला|

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