१. गुरुकृपा से जग चलता, मिलता है वरदान | करुँ नमन गुरु चरनन को, शत-शत कोटि प्रणाम || . २. बड़भागी को गुरु मिलें, सच्चे, देव समान | रखें नेह की छाँव में, मुख से बरसे ज्ञान || . ३. छवि सजाऊँ नयनन में, पियूँ चरण पखार | झूम-झूम करुँ आरती, भूल जगत संसार || . ४. भक्ति की है निर्झरनी, श्रद्धा का है ज्वार | मन डूब जाये रस में, ऐसी बहे बयार || . ५. गुरुकृपा ही दूर करे, कलियुग का संताप | पुण्यकर्म अंतर बसें, मन ना आये पाप || . ६. खुलें चक्षु दो ज्ञान के, टूटे मायाजाल | सत्य सनातन ज्ञात हो, मिटें दोष विकराल || . ७. काम, क्रोध, मद, लोभ रिपु, मत्सर घातक मोह | शनैः-शनैः सब दूर हों, हो तो सत का मोह || . ८. दुर्जन भी सज्जन बने, एक दिन साधू होय | काँटे तोड़े द्वेष के, बीज दया के बोय || . ९. ऊँच-नीच का भेद ना, कभी पसारे पाँव | प्रेम करे तो जीव से, दे के ठंढी छाँव || . १०. ईशभक्ति में लीन हो, सुबह-शाम, दिन-रात | कडवी वाणी छोड़ के, बोले मीठी बात || . ११. केवल गुरु से आसरा, नाव लगे उसपार | बस यही एक प्रार्थना, करे मन बार-बार || . १२. गुरु सुनाये सत्य वचन, क्या है अपना धर्म | कैसे मुक्ति है मिलती, कैसा होए कर्म || . १३. मार-मार के खा रहा, मनुज, मनुज को आज | कृपा करो है प्रार्थना, पूज्य गुरु महाराज || . १४. बंद नरक के द्वार हों, मिले स्वर्ग में सेज | गुरुकृपा बरसे जिसपर, मुखपर चमके तेज || . १५. मन में आये वासना, कलुषित अंतर रोय | जा धर ले गुरुचरण, मंगल-मंगल होय || . १६. सोना-चाँदी देख के, मन में लालच आय | बसें गुरु जो अंतर में, सब निर्मल हो जाय || . १७. छूट चले मांस-मदिरा, जुआ कभी न भाय | धूम्रपान सब छोड़ के, गोरस मन ललचाय || . १८. सुबह-शाम नित नेम से, कर ले गुरु का ध्यान | निर्मल कोमल चित बने, सबका हो कल्याण || . १९. विनय सुनो करुँ वंदना, हाथ जोड़ हे देव | भवसागर से तार दो, जय जय जय गुरुदेव || . २०. सही-गलत ना जानता, बालक एक अबोध | मार्ग दिखाओ आप ही, करता हूँ अनुरोध ||
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