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बड़ी काम की है बेरोजगारी

शंखनाद
शंखनाद
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ये मनुष्य की जिंदगी भी कोई जिदगी होती है| सारा दिन उछल-कूद, भाग-दौड़ बस इसी में लगे रहो| ये काम-वो काम, इधर जाना-उधर जाना, इससे झगडा-उससे रगडा यही सब रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है| कभी पढाई की टेंशन, कभी बीवी के ताने (ही…ही…ही…), कभी बाल-बच्चों की उलजुलूल मांगें, आगे चल के बेटे-बेटी की शादी की चिंता, कहने का मतलब ये की चैन नाम की तो चीज ही नहीं होती| मानव अपनी सम्पूर्ण जिंदगी में सुख नामक मृग-मरीचिका के भुलावे में आकर उसकी तरफ भागता है परन्तु वो नसीब नहीं होती| उल्टा इन्सान ही एक दिन इस बियाबान रेगिस्तान की तपती जमीन पर किसी कैक्टस के किनारे दम तोड़ देता है|

इस जीवनचक्र में आराम के पल बड़े दुर्लभ होते हैं| बड़ी मुश्किल से किसी-किसी पड़ाव पर मिलते है| एक ऐसा ही धाँसू और खाँटी सुखदायक समय होता है “बेरोजगारी”| जिंदगी के इस चरण के बारे में जितना कहा जाये कम है| ये पल वैसे ही होते हैं जैसे बारिश में छतरी, गर्मी में कोल्डड्रिंक, ठंडी में गर्म कॉफ़ी, सादे भोजन में अचार मतलब की पूरी तरह से ऑलराउंडर (ही…ही…ही…)| प्यासे को जो सुकून पानी पीने से मिलता है वही अनुभूति दुनिया की ठोकरें खाने वाले आदमी को इस “बेरोजगारी” की छत्रछाया में होती है| इसका एक-एक क्षण उपवन-भ्रमण सा एहसास देता है| आपलोग तो खुद ही समझदार हैं अतः आपको क्या बताना, चलिए इस हसीं सफ़र की कुछ खास-खास खूबियों पर चर्चा करते हैं|

Pari Hoon Mainतो भाई बात शुरू होती है कोचिंग-ट्यूशन, परीक्षा, पास-फेल का झंझटिया टाइम ख़त्म होने से क्योंकि ये सुहावना सफ़र तभी से शुरू होता है| उस पहले दिन को महसूस कीजिये जब आप देर तक सो रहे हैं, सपने में परियां आ रहीं हैं, क्योंकि उस दिन कॉलेज नहीं जाना था…उम्म्म…आ…आ…ह…कितने बजे भई…ओ..ओह…आठ ही बजे हैं…उठता हूँ…थोड़ी दे..र…में…और बस फिर करवट| नौ बजे आराम से उठिए फ्रेश होइए, नहा-धो के बैठ जाइये और तभी याद आता है की – अरे! आज तो इंडिया-पाक का मैच है…जल्दी से टीवी ऑन करते हैं…पूरा दिन तो है एन्जॉय करने के लिए| मैच देखिये, सहवाग जल्दी आउट हो जाये तो बवाल मचाइए, आस-पड़ोस में ऐसे बात कीजिये जैसे सहवाग नहीं आप ही आउट हो गए हों| इसी तरह मैच का जो भी परिणाम आये उसपर चिंतन बैठकों का आयोजन कीजिये| जिंदगी बिलकुल मक्खन सी महसूस होगी (ही…ही…ही…)|

इसके बाद क्या, मौज ही मौज है| न कोई जिम्मेदारी न कोई झंझट, कोई घर में सौदा लाने के लिए भी नहीं कहेगा क्योंकि सब जानेंगे की आपके पास पैसे तो होंगे ही नहीं (ही…ही…ही…)| बार-बार बाजार के चक्कर काटने से भी मुक्ति| जब भी आपको कहीं घूमने की इच्छा हो घर से पैसे मांगिये और बेफिक्र हो के उड़ाइए| कौन सी आपकी मेहनत की कमाई है|

इस बेरोजगारी के दौर में जब आप किसी की नौकरी पक्की होते देखेंगे तो आपके मन में विचारों का आवागमन तेज हो जायेगा| आपके मन में कई तरह के ख्याल आयेंगे, कुछ अच्छे कुछ बुरे| इसके अलावा सब लोग आपसे मीठी-मीठी बातें करेंगे, मसलन – ‘क्यों भाईसाहब, आप मिठाई कब खिला रहे हैं’, ‘अब तो मुंह मीठा करा ही दीजिये’ | ये सब बातें आपको दार्शनिकता की स्थिति प्रदान करेंगी(ही…ही…ही…)| आपका मानसिक पटल विस्तृत हो के आपको दुनिया की हकीक़त से रूबरू कराएगा| आप ज्यादा अनुभव और गाम्भीर्य को प्राप्त करेंगे|

ये तो हुई अनुभव की बात, लाभ और भी हैं| इंतना तो निश्चित है की इस टाइम में आपको पैसों का अभाव रहेगा| अपनी पर्सनल पसंद की चीजें खरीदने से पहले आप दस बार सोचेंगे – ‘ये लूँ या न लूँ’ इसी सोच विचार के दौरान आपमें मितव्यतिता नामक गुण का विकास होगा जो किसी भी सफल जीवन के लिए अनिवार्य है| कई चीजें ऐसी होंगी जिन्हें आप जेब के इज़ाज़त नहीं देने के कारण नहीं खरीद पाएंगे| उस समय आप ‘अंगूर खट्टे हैं’ के जुमले का व्यवहारिक उपयोग करते हुए भी पाए जा सकते हैं| इसके अलावा इस स्थिति में रहते हुए आपमें संतोष की भावना जागृत होगी (ही…ही…ही…)| वैसे भी कहा ही गया है की “गोधन, गजधन, बाजिधन और रतन धनखान, जब आवे संतोषधन सब धन धूरी समान|

Girl ‘बेरोजगारी’ का सबसे बड़ा फायदा तो ये है की ये आपके चरित्र निर्माण में भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है| सभी लड़कियां चाहे वो आस-पड़ोस की हों या आपके साथ पढ़ने वाली, कोई भी आप पर बुरी नजर नहीं डालेंगी| सब बड़े पवित्र मन से आपको भैया…भैया कह के बुलाएंगी (क्योंकि अच्छा कमाने वाले लड़कों की तो वो गर्ल फ्रेंड बनने या उनके साथ डेटिंग पर जाने के लिए बेचैन रहतीं हैं ही…ही…ही…)| इस वजह से आपको ब्रम्हचर्य का पालन करने में भी विशेष कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ेगा (ही…ही…ही…) और भारतीय संस्कृति में ब्रम्हचर्य का कितना महत्त्व है ये तो आप सब जानते ही हैं| वैसे भी ये भाई-बहन का रिश्ता उस गर्ल फ्रेंड-बॉय फ्रेंड के रिश्ते से कहीं ज्यादा मजबूत होता है| किसी लड़के से कहिये कि मैं तुम्हारी बहन को अपनी बहन मानता हूँ तो वो आपको गले लगा लेगा परन्तु अगर उसी से आप बोल दीजिये कि मैं तुम्हारी गर्ल फ्रेंड को अपनी गर्ल फ्रेंड समझता हूँ तो वो आगबबूला हो के आपका गला…ही…ही…ही…समझ ही गए होंगे| आपकी बहन आपको भी राखी बाँधे और आपके दोस्त को भी तो आपको कोई एतराज नहीं होगा किन्तु अगर आपकी गर्ल फ्रेंड आपको भी किस करे और आपके दोस्त…को…भी तो…कुछ कहने कि जरूरत ही नहीं है| मतलब कहने का कि ये ऐसा रिश्ता है जो टूटता नहीं|

बेरोजगारी के दिनों में किसी के भी घर जाइये तो वहां चाय मिलने की संभावना बेहद कम होती है| अब ये चाय कितनी नुकसानदायक है ये तो आप सभी जानते ही हैं (ही…ही…ही…) बहुत सी बीमारियाँ हो जाती हैं इससे, अच्छा है न ही मिले, वर्ना कमासुतों को तो लोग पकड़ ही लेते हैं – ‘अरे, बिना चाय पिए चले जायेंगे! देखिये ये ठीक नहीं है, हम भी रूठ जायेंगे आपसे’ वगैरह-वगैरह| वो भले कहते रहें कि – ‘अरे, हम अभी दो कप पी के आयें हैं’, मगर कौन सुननेवाला? और तो और आपके नाते-रिश्तेदार (खास तौर से वो जो ऊँचे पदों पर हों, चाहे सरकारी या प्राइवेट) आपसे ऐसे छिटकेंगे जैसे वो गुड़ हों और आप मक्खी (ही…ही…ही…)| तो भाई, इन बड़े अधिकारियों का क्या भरोसा? कब किसी घोटाले की कालिख मुंह पर पुतवा के सरकारी गेस्ट हाउस (जेल) में बर्तन मांजते मिलें| वैसी स्थिति में बदनामी तो आपकी ही होगी कि – अरे इसका रिश्तेदार बेईमान है! मतलब इनसे संपर्क न ही रहे तो बेहतर है| अतः इस ‘बेरोजगारी’ ने आपको इस कंडीशन से भी ऑटोमैटिक बचा लिया| फिर बैठे रहने से हाथ-पैर भी तो सुस्त हो जाते हैं अतः अपनेआप को चलायमान रखना चाहिए| ये कमी भी बेरोजगारी के दौरान रोजगार कार्यालयों और परीक्षा केन्द्रों के चक्कर काट-काट के पूरी हो जाती है (ही…ही…ही…)| आदमी कितना मेहनती हो जाता है|

अब जरा लड़कियों की बात भी कर ली जाये| तो ‘बेरोजगारी’ नाम का गुलाबी मौसम उनके लिए भी मिठास ही लेकर आता है| इसके दौरान वो अपनी खूबसूरती पर ज्यादा ध्यान दे पाती हैं (सारा दिन घर पर रह के चेहरे पर दूध-मलाई, खीरा-ककड़ी, विको टर्मरिक, ओले क्रीम और पता नहीं क्या-क्या लगाती रहती हैं…ही…ही…ही…)| सचमुच रूप क्या निखर के सामने आता है| और वहीँ ऑफिस जानेवालियों की दुर्दशा तो देखिये, धूल, पसीना बस के धक्के, उफ़ खिला हुआ मुखड़ा भी मुरझा जाता है|

खैर ये तो हुई मेरे अपने विचारों की बात, जब मैंने अपने छोटे भाईसाहब से इस बारे में पूछा तो उन्होंने तपाक से उत्तर दिया – “अरे, बेरोजगार लोग अपने घर-मोहल्ले की साफ़-सफाई में योगदान दे सकते हैं| इससे स्वच्छता अभियान को बढ़ावा मिलेगा (ही…ही…ही…)| इसके अलावा उन्हें वृक्षारोपण तथा वृद्धों की सेवा जैसे सामाजिक कार्यों में भी लगाया जा सकता है| वृक्षों की कटाई ने हमारे पारिस्थितिक तंत्र और वृद्धों की उपेक्षा ने हमारी उच्च संस्कारों वाली भारतीय व्यवस्था को कितना आहत किया है ये तो सभी जानते ही हैं|” मैं तो अवाक रह गया उनके मुंह से ऐसी बातें सुन के| मानव संसाधन का इतना बेहतर प्रबंधन! हमारे बड़े दिलवाले नेता जी भी काश ऐसे ही विचार रखते! मैंने सोचा की मेरे भाईसाहब उम्र में मुझसे भले ही साढ़े चार साल छोटे हों लेकिन बुद्धि में मुझसे बहुत…ही…ही…ही…|

तो भाई मैं तो थक गया इसके लाभ गिनाते-गिनाते जबकि अभी तो कुछ की ही चर्चा हुई है, और आपलोगों के मूल्यवान विचारों का भी स्वागत है| जो भी कहना चाहते हैं बेझिझक कहिये| वर्ना ये तो मनुष्य के जीवन का वो स्वर्णिम दौर है जो ताउम्र भुलाये नहीं भूलता| जीवन के हर मोड़ पर रह-रह के इसकी याद आती रहती है (ही…ही…ही…) और इन्सान न चाहते हुए भी अपने उस खुशनुमा अतीत के पन्नों में खोने लगता है|

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