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शिकायत एक बेटी की…

शंखनाद
शंखनाद
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मेरे मायके वालों
जल्दी थी क्या,
मैं भाग किसी के संग
चल दी थी क्या.

जो ले आये बोतल
टूटी ढक्कन वाला,
बिन चकले का बेलन
मिर्ची का निवाला.
दुनियादारी की बातें
मुझे समझाता है,
खुद कपडे की दुकान से
सब्जी ले के आता है.
मेहमानों के संग
पीता है चाय,
जाने लगता है साथ उनके
कह के बाय-बाय.
‘गजनी’ का ‘आमिर’ तो
चेला है उसका,
गली-मोहल्लों में
मेला है उसका.
कंजूसों की टोली का
राजा है वो,
बिन साबुन नहा के
तरो-ताजा है वो.
क्रीम पाउडर कभी लाता नहीं
शेविंग सोप लगाता नहीं,
अमेरिका की मंदी की चिंता है उसको
गहने ये कह के बनवाता नहीं.

प्रॉपर्टी है खानदानी,
नहीं तो मुश्किल था दाना पानी.
सोता है दिन के बारह बजे तक
खाने में दस का दम दिखाता है,
मैं दो रोटी ज्यादा ले लूं
तो पेटू कह के चिढाता है.
दसवीं फेल ग्रेजुएट है वो
बैठकी का विद्वान,
मैं बस पोस्ट ग्रेजुएट मेरा
कम पड़ जाता ज्ञान.

डर जाता एक आहट से
बनता तीस मार खान,
चलता सीना तान के ऐसे
जैसे जीता जहान.
बातें ख़त्म कभी होती नहीं
कहता मुझे वाचाल,
इंडिया हार जाए एक मैच
ला देता भूचाल.
धोनी इनका चाचा है
सहवाग इनका बाप,
बंधी मैं इसके पल्ले
यही हो गया पाप.

बोलो मेरे घरवालों
मेरी गलती थी क्या,
मैं भाग किसी के संग
चल दी थी क्या.

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