शंखनाद
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धन्य धन्य हे विद्या प्रदाता
धन्य धन्य हे राष्ट्र निर्माता,
धन्य धन्य मूल्यों के पुजारी
धन्य तुन्हारी विप्लव गाथा.
देखो अभी भी रात घनी है
नैतिकता कहीं सोयी पड़ी है,
नवजीवन को सार्थक कर दे
उस सुबह की जरूरत बड़ी है.
तुम हमें वो सबेरा ला दो
घर घर वो एक दिया जला दो,
डर के जिससे भागे अँधेरा
टूट जाये अज्ञान का घेरा.
क्रांति पथ पर होगा तुम्हारा
चुनौतियों से सामना,
विजय पताका फहरा के लौटो
हमारी है ये कामना.
(माननीय शिक्षकों को समर्पित)
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