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आज वो दौर है जब मनुष्य ज्यादा से ज्यादा व्यावहारिक या व्यावसायिक होना चाहता है. उसके लिए मानवता, नैतिकता, संस्कार जैसे शब्द धीरे धीरे महत्वहीन होते जा रहे हैं. आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में जैसे कुछ पीछे छूटता सा जा रहा है. आज हम वही करते हैं जो हमें अच्छा लगता है. जो हमारी इच्छाओं को संतुष्ट करता है. हमारी ये क्षणिक सन्तुष्टि हमारे मन, हमारी आत्मा को कित्तना बड़ा असंतोष दे देती है हमें पता ही नहीं लगता या बहुत देर से पता लगता है. ऐसे में आज जरुरत है हमें अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने की.
हमारी अंतरात्मा की आवाज ईश्वर की आवाज होती है. वो हमें हमेशा सदमार्ग की ओर ले जाती है. लेकिन सांसारिक लोभ के वशीभूत होकर लोग उस आवाज को अनसुना कर देते हैं. वो आवाज बार-बार आती है, लेकिन मनुष्य उसे नहीं सुनता. दुनिया में जो लोग अपनी अंतरात्मा की सुनते हैं, महान कहलाते हैं. चाहे हमारे स्वतंत्रता सेनानी हों या हमारे समाज सुधारक या कोई और, जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व देश और समाज के नाम कर दिया, वो क्या किसी व्यक्ति विशेष के बहकावे में आकर ये सब करने को मजबूर हुए? हर्गिज नहीं. उन्होंने वही किया जो उनकी अंतरात्मा ने उनसे कहा. आज हमारा देश और समाज उनका आभारी है.
आज मनुष्य अपने एक समय के भोजन के लिए निर्दोष जानवरों की जान ले लेता है. हमें ये हक़ किसने दिया? क्या हम किसी को जीवन दे सकते हैं? अगर नहीं तो हमें किसी की जान लेने का भी कोई अधिकार नहीं. लोग नए साल की खुशियाँ मनाते हैं, विवाहोत्सव मनाते हैं और इसी चक्कर में न जाने कितने मुर्गों की या बकरों की हत्या हो जाती है. क्या हमारी अंतरात्मा हमें इसकी स्वीकृति देती है? हर्गिज नहीं.
हमारी सामाजिक बुराइयाँ, अपराध, नैतिक पतन इस सबके पीछे मुख्य कारण क्या है? आज हमें इसके बारे में सोचना ही होगा.
इस पुरे ब्लॉग का असली मकसद इसके माध्यम से आम लोगो से एक नम्र निवेदन करना है की अपनी अंतरात्मा की आवाज को सुनें और उसे अपने जीवन में उतारें.
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