शंखनाद
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कितनी दूर आ गए,
आँखें खुली तो सोचा
हम कहाँ आ गए.
अपने जो थे
लगते हैं पराये,
खोये खोये से
सब कुछ भुलाये.
दीवानगी है बस
ऊँचाइयों की,
मिली है कश्ती
परछाइयों की.
इंसानियत राहों में
गिरा आ गए,
आँखें खुली तो सोचा
हम कहाँ आ गए.
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